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Harsud: नर्मदा का पानी उतरने पर ऐसा दिखता है शहर | Old Harsud City |
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हरसूद सन 1218 से भी पूर्व से विद्यमान था। खंडवा का हरसूद जहां कभी हर्षवर्धन ने खूबसूरत शहर बसाया था। आज यही खूबसूरत शहर खंडहरों में तब्दील हो गया हैं। कभी यहाँ मंदिर में अज़ाने होती थी तो कभी मंदिरों में भजन की सुरलहरिया लेकिन अब यहां चारों और सन्नाटा ही सन्नाटा पसरा पड़ा हैं।
ये सब इसलिए हुआ क्योंकि 30 जून 2004 को इंदिरा सागर बांध के चलते इस बसे बसाए शहर को उजाड़ दिया गया। आज के दिन लोग यहां पहुंचकर अपनी पुरानी यादों को इस बियाबान में ढूंढ़ते हैं।
15 साल पहले हरसूद में लगभग 5600 परिवार के 25 हजार लोग रहा करते थे। जो अब विस्थाप्त हो कर अलग अलग जगहों पर रहने चले गए। कुछ परिवार बने तो कुछ परिवार इस विस्थापन के दर्द के चलते पूरी तरह ख़त्म हो गए। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 23 अक्टूबर 1984 को इंदिरा सागर बांध की आधारशिला रखी।
बांध की आधारशिला के साथ ही राष्ट्रीय राजनीतिक में हरसूद क्षेत्र भी चर्चा में आया। राजनीतिक में चर्चा और संघर्ष के बाद भी हरसूद को अभी तक कोई लाभ नहीं मिला। रोजगार के नाम पर हरसूद एवं उसके आसपास के क्षेत्र कोई उद्योग नहीं है। इसके लिए किसी भी दल ने प्रयास भी नहीं किया। पर इसकी बरसी आते ही सभी नेता सीना पीटने लगते हैं।
2009 के परिसीमन में हरसूद विधानसभा को बैतूल लोकसभा में जोड़ दिया गया। 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी ने जीत हासिल की। हरसूद विधानसभा में कुल 2 लाख 35 हजार मतदाता है। अकेले हरसूद में 14 हजार मतदाता है। पूर्व मंत्री विजय शाह ने 1990 में हरसूद से पहला चुनाव लड़ा । तब से लेकर अबतक वही लगातार जीतते आ रहे हैं। मंत्री शाह मप्र शासन ने 2004 में पहली बार मंत्री बने।
इसके बाद 2008 और 2013 की भाजपा सरकार में भी मंत्री पद मिला। पर हरसूद की झोली खाली ही रही। हरसूद को जब डुबोया जा रहा था तब तत्कालीन सत्ताधारी दल ने हरसूद वालों को सपना दिखाया था की नए हरसूद को एम्सटरडम बना दिया जाएगा। लेकिन हरसूद की बदहाली पर सिर्फ आंसू ही बहाया जा सकता हैं। इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो राजा हर्षवर्धन के कार्यकाल हरसूद को उनके राज्य की राजधानी भी बताई जाती है।